रविवार को नहीं की जाती पीपल के वृक्ष की पूजा जानीए क्या है इसका कारण :-
सनातन धर्म में पीपल वृक्ष को देवों का देव कहा गया है। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकरपीपल को देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं," मैं वृक्षों में पीपल हूं।"
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है
जिन लोगों का भाग्य साथ नहीं देता उन्हें पीपल में प्रतिदिन जल चढ़ाकर, सात परिक्रमा करनी चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में व्यक्ति को भाग्य का साथ अवश्य मिलने लगेगा।
रात में पीपल की पूजा को निषिद्ध माना गया है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि रात्री में पीपल पर दरिद्रा बसती है और सूर्योदय के बाद पीपल पर लक्ष्मी का वास माना गया है।
मां लक्ष्मी और उनकी छोटी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और
उनसे बोली, " जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो?" श्री विष्णु ने कहा,"आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो।"
इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा।
रविवार को पीपल की पूजा नहीं की जाती क्योंकि जब विष्णु भगवान ने मां लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी।
अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा," वो कैसा वर पाना चाहती हैं।" तो वह बोली कि," वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो।"
श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला।
दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी।
श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली," जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी।" धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है।
इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।
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